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इस शहर को 1 दिन के लिए बनाया गया था भारत की राजधानी!!! जानें किसने और क्यों बनाया?

इस शहर को 1 दिन के लिए बनाया गया था भारत की राजधानी!!! जानें किसने और क्यों बनाया?

इस शहर को 1 दिन के लिए बनाया गया था भारत की राजधानी!!! जानें किसने और क्यों बनाया?

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यदि आप घूमने का शौक रखते हैं और साथ ही इतिहास में भी रुचि रखते हैं तो आपको ऐतिहासिक शहरों के बारे में जानकर काफ़ी ख़ुशी भी होती होगी। भारत में बहुत से ऐसे शहर हैं, जिनका इतिहास बहुत ही दिलचस्प रहा है।

हम आपको उन्हीं शहरों में से एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसे एक दिन के लिए भारत की राजधानी बनाया गया था। अब आपको यह जानने की जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर यह कहाँ, कब और कैसे हुआ? और तो और इस शहर का नाम क्या है? इस शहर का नाम है – इलाहाबाद।

इलाहाबाद का इतिहास

इलाहाबाद, जिसे अब ‘प्रयागराज’ के नाम से जाना जाता है। इतिहास के अनुसार, मुगल शासक अकबर ने इस शहर का नाम ‘इलाहबाद’ रखा था। इलाहबाद का मतलब होता है – ‘अल्‍लाह का शहर’।

फिर बाद में यह इसका नाम ‘इलाहाबाद’ कर दिया गया। यह शहर मुगल शासन के समय एक प्रांतीय राजधानी बनाया गया था। साल 1599 से 1604 तक मुगल शासक जहाँगीर ने इस शहर में अपना मुख्यालय बनाया था।

पर्यटन का केंद्र

प्रयागराज काफ़ी समय से Administrative और Education Centre रहा है। यह पर्यटन का भी केंद्र है। इस शहर में और आसपास बहुत से ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान स्थित हैं। यह 3 पवित्र नदियों गंगा, यमुना तथा सरस्वती के संगम क्षेत्र है, जिसका धार्मिक महत्व भी है। इसी वजह से इसे ‘संगम नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है।

इस ‘संगम नगरी’ में लाखों की संख्या में लोग घूमने आते हैं। हर 12 साल पर इस शहर में महाकुंभ तथा हर 6 महीने पर ‘अर्ध कुंभ’ का शानदार आयोजन किया जाता है।

एक दिन की राजधानी

जब मुगलों का पतन हुआ तथा भारत पर ब्रिटिश राज स्थापित हुआ, तब इलाहाबाद को एक दिन के लिए भारत की राजधानी बनाया गया था। वह साल 1858 था। जिस समय इलाहाबाद देश की राजधानी बना, उस समय यह शहर उत्तर पश्चिमी प्रांत की राजधानी भी था।

प्रयागराज में पर्यटक स्थल

प्रयागराज में संगम के अलावा ‘खुसरो बाग’ बहुत प्रसिद्ध है। विशेषतौर पर इस बाग की मुगल वास्तुकला बहुत आकर्षक है। इसके अलावा यहाँ का ‘आनन्द भवन’ भी यहाँ आने वाले पर्यटकों को बहुत लुभाता है।

यह भवन कभी पंडित नेहरू के परिवार की हवेली हुआ करती थी। 1970 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँ धी ने इस हवेली को भारत सरकार को दान में दे दिया था और तभी से यह जगह ‘आनन्द भवन’ के नाम से जानी जाती है।

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