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आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ

आधुनिक काल के कवि और उनकी रचनाएँ

यदि आप किसी देश और वहाँ की संस्कृति को जानना चाहते हो तो उसका सबसे आसान और किफ़ायती तरीका है कि आप उस देश का साहित्य पढ़ लीजिए। अगर हमारे देश भारत की ही बात की जाए तो इसे ‘विश्व का धर्म गुरु’ माना जाता है और यदि कोई इस उपाधि का कारण जानना चाहे तो वह ‘हिन्दी साहित्य’ के चार कालों –

  1. आदिकाल
  2. भक्तिकाल
  3. रीतिकाल
  4. आधुनिक काल

में से दूसरे स्थान पर आने वाले ‘भक्तिकाल’ को पढ़कर अपनी जिज्ञासा को शांत कर सकता है और ठीक इसी प्रकार चौथे स्थान पर आने वाले ‘आधुनिक काल’ को पढ़कर आज के भारत को जाना जा सकता है।

आधुनिक – जिसका मतलब ही होता है वर्तमान समय। इस काल की शुरुआत सन् 1850 से मानी जाती है। आधुनिक काल हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ काल कहलाता है। सर्वश्रेष्ठ कहलाए जाने की वजह है इसकी ढ़ेरों विशेषताों का ‘युग’ के नाम से प्रसिद्ध होना। जिनके आधार पर आधुनिक काल को बाँटा गया है –

भारतेन्दु युग

राष्ट्रीय भावना – इस काल की प्रमुख विशेषता है। इस समय में ‘भारतेन्दु हरिश्चंद्र’ नाम के एक कवि हुए, जिन्होंने अपनी कविताओं के ज़रिए भारत पर शासन कर रहे अंग्रेज़ों का विरोध किया। भारतेन्दु जी की इन पंक्तियों द्वारा उनका भारत के लोगों का शोषण कर रही ब्रिटिश सरकार का जमकर किया गया विरोध देखा जा सकता है –

“भीतर भीतर सब रस चूसै, हँसि हँसि के तन मन धन मूसै।
जाहिर बातिन में अति तेज, क्यों सखि साजन। नहिं अंग्रेज।”

(source:-kavitakosh.org )

इसी के साथ ही उन्होंने अपनी ‘प्रबोधिनी’ नामक कविता के माध्यम से ‘विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार’ किया है, तो कहीं ‘विजयिनी विजय वैजयंती’ नाम की कविता के द्वारा ‘भारतीय सेना की जीत’ को दर्शाते हुए लोगों में ‘देश – प्रेम जगाने का प्रयास’ किया है।
इसके अलावा उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ शुरू की और ‘भारतेन्दु मण्डल’ की स्थापना की जिसमें अनेक कवियों ने उनका भरपूर साथ दिया। जैसे :-

बदरी नारायण चौधरी प्रताप नारायण मिश्र ठाकुर जमोहन सिंह अम्बिका दत्त व्यास बालकृष्ण भट्ट बालमुकुंद गुप्त

‘प्रताप नारायण मिश्र’ के देश – प्रेम को हम इन पंक्तियों में देख सकते हैं –
“चहहु जो साँचहु निज कल्याण, तौ सब मिलि भारत संतान।
जपो निरंतर एक ज़बान, हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान।।”

(source: hi.wikisource.org )

आर्थिक दशा – उस समय हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था कैसी थी इसका उत्तर खोजने के लिए हम ‘बालमुकुंद गुप्त’ जी की कविता की इन पंक्तियों को देख सकते हैं। इन पंक्तियों में किसानों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दिखाया गया है –


“जिनके कारण सब सुख पावै, जिनका बोया सब जन खाय।
हाय हाय उनके बालक नित भूख के मारे चिल्लायै।”

(source:- sol.du.ac.in )

द्विवेदी युग
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को कई भाषाओं का ज्ञान था, वे इतिहास के भी बहुत अच्छे जानकार थे और साथ ही अनुवाद और विज्ञान के क्षेत्र में भी उन्हें काफी जानकारी थी। इन्हीं ख़ूबियों के कारण इन्हें ‘ज्ञान की राशि का संचित कोष’ कहे जाने के साथ इस युग का नाम भी इनके नाम पर रखा गया।

भारतेन्दु मण्डल की तरह इन्होनें भी ‘द्विवेदी मण्डल’ की स्थापना की। जिसमें शामिल कवि थे –
मैथलीशरण गुप्त      अयोध्या सिंह उपाध्याय              श्रीधर पाठक

नाथूराम शर्मा           रामनरेश त्रिपाठी

नारी उत्थान – ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ जी का एक लेख ‘काव्य की उपेक्षिताएँ’ आया जिसमें इस विषय पर बात की गई की स्त्रियों को लेकर साहित्य में कविताएँ नहीं लिखी गईं और कवियों को ऐसे विषयों पर भी लिखना चाहिए। बस इसी बात से प्रभावित होकर ‘मैथलीशरण गुप्त’ जी ने रामायण को आधार बनाकर ‘साकेत’ नाम की 12 भागों में विभाजित एक लम्बी कविता लिखी। जिसकी विशेषता यह थी कि उसके नौवें भाग में लक्षमण जी के वनवास जाने के बाद उनकी पत्नी उर्मिला का उनसे बिछड़ने के बाद की हालत को दिखाया है|

स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रेरणा – इस युग में विशेष रूप से इस पहलु की ओर ध्यान दिया गया है। ‘नाथूराम शर्मा’ जी ने अपनी कविता ‘शंकर सर्वस्व’ लिखकर इस तरफ कदम बढ़ाया। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –

“देशभक्त वीरों, मरने से नेक नहीं डरना होगा।
प्राणों का बलिदान देश के वेदी पर करना होगा।”

(source: www.hindisahity.com )

हास्य व्यंग्य – एक मज़ाकिया लहज़े में बिना किसी दूसरे को दुःखी करके अपनी बात कह जाना, हास्य व्यंग्य कहलाता है। ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ जी ने “सरगौ नरक ठिकाना नाहिं” नाम की कविता में गाँव से शहर जाकर वहाँ पर विदेशी परम्परा को अंधाधुंध, बिना सोचे – समझे अपनाने वालों का विरोध किया है।

छायावाद
छायावाद का अर्थ है – किसी के भावों की छाया का कहीं दूसरी जगह पड़ना मतलब किसी कविता में उसके आसान से मतलब के इलावा एक गहरे भाव का भी छुपा होना। इस युग को ‘आधुनिक काल का स्वर्ण युग’ भी कहा जाता है। इस युग की सबसे बड़ी विशेषता है – इसका छंद मुक्त होना। इस युग के पहले के समय में सिर्फ उसी को कविता माना जाता था जो छंद के नियमों से बंधी हो जैसे:- दोहे, पद। जिनमें अक्षरों की संख्या और मात्रा को गिना जाता हो। इसी तरीके के कारण कोई आम व्यक्ति कविता नहीं लिख पता था। छंदों के बिना कविता लिखना, ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी ने इस तरीके की कविताओं को साहित्य में जगह दी।

इस युग के चार स्तम्भ कहे जाने वाले कवि हैं –
1.जयशंकर प्रसाद                     2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
3. सुमित्रानंदन पंत                    4. महादेवी वर्मा

प्रतीकात्मकता – इसी युग से प्रकृति यानी पेड़ – पौधों, पहाड़, नदियों आदि को ज़रिया बनाकर अपनी बात कहने की कविताएँ लिखी जानी शुरू हुईं और इसका श्रेय जाता है ‘जयशंकर प्रसाद’ जी को, जिन्हें ‘छायावाद का प्रवर्तक’ मतलब छायावाद की शुरुआत करने वाला भी माना जाता है। जयशंकर जी की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ की इन पंक्तियों के द्वारा प्रकात्मकता को समझा जा सकता है –

“अंबर पनघट में डुबो रही तारा – घट उषा नागरी।”

इसका मतलब हुआ कि (अम्बर) आसमान रूपी (पनघट) सरोवर में (उषा) सुबह रूपी (नागरी) लड़की (तारा – घट) तारों से सजा हुआ घड़ा डुबो रही हो।

वेदना और करुणा – वैसे तो निराला जी ने अन्धविश्वास, राष्ट्रप्रेम, प्रकृति – चित्रण आदि पर भी कविताएँ लिखी हैं लेकिन विरह – वेदना यानी जुदाई का दर्द जैसे विषय पर इनकी बराबरी कोई नहीं कर पाया। इनका ‘सरोज स्मृति’ नाम का एक शोक गीत है। जिसे ‘हिन्दी साहित्य संसार का सबसे प्रसिद्ध शोकगीत’ कहा गया है जोकि इन्होने अपनी बेटी की मृत्यु के बाद उसकी याद में लिखा था।

रहस्यवाद – जहाँ पर आत्मा और परमात्मा के भेद को जानना, परमात्मा को पाने की बात कही गई हो, वह रहस्यवाद कहलाता है। ‘महादेवी वर्मा’ जी की ज्यादातर कविताएँ इसी विषय पर आधारित हैं।

“कनक से दिन मोती सी रात,
सुनहली सांझ गुलाबी प्रात;
मिटाता रंगता बारम्बार,
कौन जग का यह चित्राधार?”

महादेवी वर्मा जी अपनी इन पंक्तियों में हररोज़ दिन और रात होता देख इस संसार रूपी चित्र को बनाने वाले उस परमात्मा की बात कर रही हैं।

प्रकृति – चित्रण – ‘सुमित्रानंदन पंत’ जिनका जन्म कौसानी में हुआ जोकि भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक गाँव है। पहाड़ियों में स्थित यह जगह प्रकृति के निकट है और इस कारण भी प्रकृति के प्रति उनका प्रेम रहा है तथा यही प्रेम उनकी कविताओं में देखने को मिला है। ‘धूप का टुकड़ा’ कविता की इस पंक्ति में प्रकृति के इस असाधारण चित्रण को देखा जा सकता है –

“एक धूप का हँसमुख टुकड़ा
तरु के हरे झरोखे से झर
अलसाया है धरा धूल पर
चिड़िया के सफ़ेद बच्चे सा!”

धूप का धरती पर पड़ना जोकि बहुत सामान्य बात है उसी बात को इन्होनें इतने ख़ूबसूरत तरीके से लिख दिया है।

प्रगतिवादी युग
प्रगतिवाद का अर्थ है – समाज, साहित्य आदि के विकास पर ज़ोर देना। इसका मतलब यह हुआ कि इस समय में प्रकृति, सौंदर्य, प्रेम के अलावा उन विषयों पर अधिक लिखा गया जो समाज से संबंधित थे।

सामाजिक समस्या का वर्णन – कवि ‘नागार्जुन’ जी ने समाज से संबंधित मुद्दों पर अधिक कविताएँ लिखीं। जैसे –

“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।”

(source:- kavitakosh.org )

‘अकाल के बाद’ नामक कविता की इन पंक्तियों के द्वारा उन्होंने देश में अकाल पड़ने के बाद के हालत को दिखाया है।

ग्रामीण परिवेश और लोक संवेदना – ‘केदारनाथ अग्रवाल’ जी विशेष रूप से गाँवों और किसानों के कवि हैं। किसानों की दयनीय दशा का सजीव चित्रण करने के लिए उनकी कविता काफ़ी है –

“जब बाप मरा तब यह पाया
भूखे किसान के बेटे ने:
घर का मलबा, टूटी खटिया,
कुछ हाथ भूमि – वह भी परती।
चमरौधे जूते का तल्ला,
छोटी, टूटी, बुढ़िया औगी
दरकी गोस्सी, बहता हुक्का,
लोहे की पत्ती का चिमटा।”

शोषकों का विरोध – ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ जी ने गरीब जनता का शोषण करने वाले पूंजीवादियों का विरोध किया है। इनकी कविता की यह पंक्ति इसका सशक्त उदाहरण है –

“बच नहीं सकते दगा कर
कान में उँगली
यह विषम ज्वाला जगाकर
ध्वंस होगा तख़्त भू – लुंठित तुम्हारा ताज
सुन रहे हो क्रांति की आवाज़।”

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