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हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलें

Lakes of Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश भारत का एक ऐसा राज्य है जो ख़ूबसूरत वादियों, हरे – भरे शांत जंगलों, शीशे की तरह साफ़ – झीलों और इन सभी के मेल से बने मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। अगर इसकी झीलों की बात की जाए तो इन झीलों में जितनी ख़ूबसूरती पर्यटकों को मोहित करने की है, उतना ही आकर्षण आध्यात्मिक आनंद के लिए भी है।
हिमाचल प्रदेश की ऐसी भी कुछ झीलें है जिन्हें उनकी सुंदरता के आधार पर प्रसिद्धि मिली है। ऐसी झीलों में सबसे पहले आती है –

डल झील 

सबसे लोकप्रिय और ख़ूबसूरत झीलों में गिनी जाने वाली – डल झील हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में तोता रानी गाँव के पास स्थित है और समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग 1000 मीटर है।

डल झील के एक छोर पर छोटे – छोटे झोंपड़ीनुमा Hotel और Restaurants बने हुए हैं, जहाँ पर पर्यटकों के ठहरने के व्यवस्था की गई है। वहीं दूसरे छोर पर ऊँचे – ऊँचे देवदार के पेड़ एक पंक्ति में लगे हुए हैं। जिनको देखकर ऐसा लगता है जैसे ये पेड़ यहाँ पर आए पर्यटकों का स्वागत कर रहे हों।

Picnic मनाने के लिए हिमाचल प्रदेश की डल झील काफ़ी प्रसिद्ध है। अपनी Family या Friends के साथ घूमने – फिरने के लिए यह एक Perfect Place है। डल झील के नज़दीक नड्डी तक Tracking करके अपने सफ़र को और ज़्यादा रोमांचक बनाया जा सकता है।

सितंबर के महीने में डल झील के किनारे गद्दी जनजाति के द्वारा भगवान शिव से संबंधित एक मेले का आयोजन भी करवाया जाता है। यहाँ एक भागसू नाथ का मंदिर भी है। मेले में घूमने के साथ – साथ इस मन्दिर के दर्शन भी किए जा सकते हैं।

खज्जियार झील  

खज्जियार झील भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में चम्बा ज़िले के खज्जियार नाम के गाँव में स्थित है। इस झील की समुद्रतल से ऊँचाई 1951 मीटर है।
जिस दिन धूप खिली होती है उस दिन खज्जियार झील के किनारे से कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं, जो हिमाचल प्रदेश की इस खज्जियार झील की सुन्दरता में धार्मिक प्रसिद्धि जोड़ देता है।

पर्वतों से घिरी खज्जियार झील घास के मैदान और हरे – भरे घने जंगलों के कारण भारत का ‘Mini Switzerland’ कहलाती है। प्रकृति के मनोरम दृश्यों के अलावा इस जगह पर Paragliding, Camping और Horse Riding जैसी Activities भी करवाई जाती हैं।

चन्द्रताल झील 

हिमाचल प्रदेश में लाहौल – स्पीति ज़िले के लाहौल क्षेत्र में चन्द्रताल झील स्थित है। समुद्र तल से इस झील की ऊँचाई लगभग 4,300 मीटर है। जब ह्वेनसांग नामक एक चीनी विद्वान, बौद्ध भिक्षु भारत आए तो चन्द्रताल झील की ख़ूबसूरती को देखकर उन्होंने इसे ‘लोहित्य सरोवर’ का नाम दिया।

चन्द्रताल झील का आकर देखने में अर्धचन्द्राकार (आधे चाँद की तरह) जैसा है और इसी आकार के कारण यह ‘चंद्रताल’ कहलाती है। चन्द्रताल झील अपने नीले रंग के पानी के लिए भी Famous है।

Spring Season के आते ही चन्द्रताल झील के आसपास के मैदानी इलाके रंग – बिरंगे जंगली फूलों से खिल उठते हैं। ढलते दिन के साथ चन्द्रताल झील का पानी भी रंग बदलने लगता है। इसका पानी पहले लाल से नारंगी, फिर नारंगी से नीला और आख़िरी में नीला से पन्ना हरा रंग का हो जाता है।

चन्द्रताल झील की यह रंग बदलती विशेषता इसके नाम को हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में अंकित कर देती है। चन्द्रताल झील तक पहुँचाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि सिर्फ़ Tracking करके ही इस झील तक पहुँचा जा सकता है। लेकिन अगर आप एक Adventurous Tourists हैं तो यहाँ पर आपको Tracking और Camping करने में ज़्यादा मज़ा आएगा।

रेणुका झील 

‘हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले में रेणुका झील नाहन नाम की जगह से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 660 मीटर है।’

रेणुका झील के नाम के पीछे की कहानी पौराणिक है। माना जाता है कि प्राचीन काल में यहाँ सहस्रबाहु नाम का एक अत्याचारी राजा था। उसने महर्षि परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि को मार दिया था।

जब वह उनकी माता रेणुका जी को मारने उनके ओर बढ़ा तो धरती फट गई और वह उसमें समा गईं। उनके धरती में समाने के बाद उसमें पानी भर गया और वहाँ झील बन गई और उनके नाम पर इस झील का नाम रेणुका झील पड़ गया। इस झील के आकार का महिला की आकृति की तरह होना भी इसके नाम का ही हिस्सा है।

प्राकृतिक सुन्दरता से ज़्यादा धार्मिक महत्त्व होने के कारण रेणुका झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है। यहाँ कार्तिक मास (October – November) में 5 दिन तक ‘अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेला’ मनाया जाता है।

अल्पाइन के घने जंगलों से घिरी रेणुका झील में Boating करते हुए इसके लुभावने दृश्यों को देखने के साथ – साथ इस झील में रहने वाली भिन्न – भिन्न प्रकार की मछलियों के साथ पानी में रहने वाले अन्य जीवों को भी देखा जा सकता है।

पराशर झील 

पराशर झील हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले से लगभग 50 किलोमीटर दूर उत्तर में धौलाधार नामक पर्वतमाला के बीच स्थित है। इसकी ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 2730 मीटर है। इस झील का पानी Crystal Clear’ है, मतलब बहुत साफ़ पानी है।

इसमें एक तैरता हुआ तापू भी है। कहा जाता है कि पहले वह सुबह पूर्व दिशा तथा शाम को पश्चिम दिशा में तैरता था लेकिन वर्तमान में कभी लगातार तैरता है, तो कभी कुछ द‍िनों के ल‍िए एक ही जगह पर ठहर जाता है। इस टापू का रहस्य हिमाचल प्रदेश की अन्य झीलों से पराशर झील को अलग और प्रसिद्ध करता है।

पराशर झील के बगल में तीन मंजिल का एक शिवालय बना हुआ है। इस मन्दिर को राजा बाणसेन ने 14 वीं शताब्‍दी में बनवाया था। कहा जाता है कि ऋषि पराशर ने जिस स्थान पर बैठ कर तपस्या की थी, वर्तमान समय में वहाँ पर मन्दिर है।

पराशर झील से संबंधित एक मान्यता है कि ऋषि पराशर ने एक बार गुर्ज (छड़ी) से इस जगह पर हमला किया था जिसके कारण पानी निकला और उसने झील का आकार ले लिया।

इसके चारों ओर घूमने से एक अनूठी आध्यात्मिक शांति का एहसास होता है। जून के महीने में पराशर झील के पास ‘सरनौहाली मेला’ लगता है, जिसमें मंडी और कुल्लू ज़िले से काफ़ी लोग यहाँ आते हैं। यहाँ पर आने वाले सैलानियों के ठहरने के लिए एक Forest Rest House, HPPWD Rest House और मन्दिर समिति आदि बने हुए हैं।

मणिमहेश झील 

मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले से 100 किलोमीटर दूर भरमौर नामक स्थान पर है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग 4200 मीटर है। तिब्बत की पवित्र मानसरोवर झील के पास स्थित होने की वजह से मणिमहेश झील को हिन्दुओं द्वारा एक पवित्र स्थल माना जाता है।

मणिमहेश का शाब्दिक अर्थ है “शिव के आभूषण”। मणिमहेश झील की यात्रा बर्फ़बारी के चलते अधिकांश समय बन्द ही रहती है। पर्यटक और तीर्थ यात्री 13 किलोमीटर पहाड़ों की हरी – भरी पैदल यात्रा तय करके मणिमहेश झील तक पहुँचते हैं।

जिसे हिन्दू Calendar के According, अगस्त और सितंबर के महीने के दौरान अमावस्या के आठवें दिन मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश की झीलों में यह झील एक तीर्थ यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है, इस यात्रा को ‘मणिमहेश यात्रा’ के रूप में भी जाना जाता है।

मणिमहेश झील में रक्षाबंधन के दिन छोटा स्नान और राधा अष्टमी के दिन बड़ा स्नान का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर पुरुषों के स्नान के लिए ‘शिवकुण्ड’ और महिलाओं के स्नान के लिए ‘गोरी कुण्ड’ बनाया गया है। मणिमहेश झील से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर ‘धनछो’ नामक स्थान है, जहाँ पर शिवजी ने भस्मासुर से बचने के लिए पनाह ली थी।

भृगु झील 

भृगु झील हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के पूर्व में बसे गुलाबा गाँव से 6 किमी की दूरी पर स्थित है। यह समुद्रतल से लगभग 4,235 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक प्रसिद्ध झील है, जो हिमाचल प्रदेश की प्रमुख झीलों में से एक है। एक मान्यता है कि यहाँ ऋषि भृगु ने तपस्या की थी, जिस वजह से इस झील का नाम भृगु झील पड़ गया।

एक प्राचीन लोककथा के अनुसार देवताओं ने इसके पवित्र जल में डुबकी लगाई थी जिसके कारण भृगु झील का एक नाम ‘Pool Of Gods’ भी पड़ गया। भृगु झील तक जाने का रास्ता घास के हरे – भरे मैदानों के बीच में से होता हुआ निकलता है। इस ख़ूबसूरत नज़ारे की वजह से इस रास्ते का नाम ‘Bhrigu Lake Meadows’ रखा गया।

मई से अक्टूबर की बीच भृगु झील की सैर का लुत्फ़ उठाया जा सकता है तथा बाकी के छह महीनों में यह झील पर बर्फ़ की चादर ओढ़ कर रखती है। यदि Sports के बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश की यह झील Tracking और River Rafting के लिए प्रसिद्ध है।
भृगु झील के पास की Tracking देवदार के जंगलों और खर्सू ओक के ऊँचे – ऊँचे पेड़ों से घिरे गुलाबा गाँव से शुरू होती है। चारों ओर बर्फ़ से ढकी चोटियाँ भृगु झील आने वाले पर्यटकों को शांति का अनुभव कराती है।

निष्कर्ष:- हिमाचल प्रदेश की ऐसी आनंदमयी ख़ूबसूरती और धार्मिक परिवेश के बारे में जानकार शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसके मन में यहाँ जाने के प्रबल इच्छा पैदा न हो। हिमाचल प्रदेश की इन प्रसिद्ध झीलों के माध्यम से हमें यह भी पता चलता है कि इसे ‘देव भूमि’ क्यों कहा गया है। हिमाचल प्रदेश में देवी – देवताओं का वास करने से ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उन्होंने ही इसे प्राकृतिक सुन्दरता का वरदान दिया होगा।

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