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कोरोना के बाद आई एक और महामारी!!! हो जाएँ सावधान, नहीं तो पड़ेगा भारी

कोरोना के बाद आई एक और महामारी

Another pandemic after Corona!!! Be careful, otherwise it will be heavy

‘महामारी’ इस शब्द को सुनते ही सबसे पहला नाम जो हमारे दिमाग में आता है, वह है – कोरोना वायरस। हम सभी ने मिलकर आपसी सहयोग के कारण इस वायरस के खिलाफ ज़िन्दगी की जंग जीती है।

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हम अब दोबारा चैन से जीने लगे हैं लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। कोरोना वायरस के बाद अब ‘पर्माफ्रॉस्ट’ नाम की दूसरी महामारी तेज़ी से उभर रही है, यह महामारी भी प्रकृति से ही सम्बन्धित है। दरअसल, यह महामारी हमारी धरती की बर्फ़ीली ज़मीन से आ सकती है जोकि करोड़ों वर्षों से जमी हुई है।

पर्माफ्रॉस्ट का अर्थ

वह पदार्थ जो स्थायी रूप से जमी हुई धरती के नीचे पाए जाते हैं, उन्हें पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं। यह पदार्थ किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। जैसे :- खनिज मिट्टी, रेत, जैविक मिट्टी, बजरी आदि।

अगर देखा जाए तो हम बर्फ़ के बड़े – बड़े glacier को पर्माफ्रॉस्ट की श्रेणी में रख सकते हैं किन्तु वैज्ञानिक Scientist glacier या sea ice को पर्माफ्रॉस्ट मानने से इंकार कर देते हैं।

इस धरती के north side में (Arctic) लगभग 2 करोड़ 30 लाख वर्ग किलोमीटर जगह वर्षभर जमी रहती हैऔर इस जमी हुई धरती के भीतर करोड़ों साल पुराने सूक्ष्मजीव पनप रहे हैं।

जैसे – जैसी इस दुनिया का तापमान बढ़ता जा रहा है, वैसे – वैसे विश्वभर में पर्माफ्रॉस्ट लगातार पिघलते जा रहे हैं, इन परिस्थितियों में करोड़ों वर्षों से धरती के नीचे पनप रहे सूक्ष्मजीव, रोगजनकों के अवशेष आदि अब धीरे – धीरे बाहर आने लगे हैं।

पर्माफ्रॉस्ट का कारण

यदि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की बात की जाए तो Climate change और उसमें भी Global warming पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का प्रमुख कारण है। तेज़ी से होता Climate change अब पूरी दुनिया के लिए चिन्ता का एक विषय बन गया है।

Climate change का सबसे अधिक प्रभाव Arctic पर पड़ा है। global temperature के निरन्तर बढ़ते जाने से Arctic के पर्माफ्रॉस्ट की परतें एक – एक करके कम होती जा रही हैं।

जैसे – जैसे पर्माफ्रॉस्ट की परतें कम होती जा रही हैं वैसे – वैसे उन परतों में जमे हुए प्राचीन वायरस हमारे वातावरण में शामिल होते जा रहे हैं और ऐसी आशा की जा रही है कि कोरोना या फिर उससे भी अधिक खतरनाक महामारी इस दुनिया को प्रभावित करेंगी।

कैसे बन सकती है पर्माफ्रॉस्ट एक महामारी?

Arctic और virus का रिश्ता काफ़ी पुराना या फिर कह सकते हैं की सदियों पुराना रिश्ता है। साल 1918 में आई influenza नाम की महामारी के शिकार हुए लोगों के शरीर आज भी Arctic पर्माफ्रॉस्ट में दबे हुए हैं।

इसके अलावा 1890 के दशक में Siberian बस्तियों में चेचक के प्रकोप से मृत लोगों के शव सदियों बाद, अब नष्ट हो रही कोलिमा नदी के किनारे पर फिर से उभरने लगे हैं।

Arctic की बर्फ़ के भीतर सैकड़ों या फिर हज़ारों वर्षों तक संरक्षित रहने के बाद अब और भी बहुत से अपरिचित virus और bacteria इन्सानों में फैल सकते हैं। मनुष्य एवं जानवरों द्वारा जो बिमारियाँ फैल रही हैं, वह बीमारियाँ दोबारा से पैदा हुए इन रोगाणुओं के सामने कुछ भी नहीं हैं।

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